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हर महीने पैसा आता है, फिर भी बचता क्यों नहीं? ये 10 सच्चाइयाँ चुभेंगी

दिसंबर 24, 2025
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हर महीने Salary का message आता है और एक पल के लिए मन हल्का हो जाता है, लगता है कि चलो इस बार भी किसी तरह निकल गया, लेकिन ये राहत ज़्यादा देर टिकती नहीं और कुछ ही दिनों बाद वही जाना-पहचाना खालीपन लौट आता है, कभी grocery का bill देखते समय, कभी card swipe करते हुए, कभी महीने के आख़िर में balance check करते वक्त, और तब मन में वो सवाल उठता है जिसे हम अक्सर खुद से भी ज़ोर से नहीं पूछते कि पैसा आया तो था, फिर गया कहाँ, बाहर से सब normal दिखता है, नौकरी है, घर चल रहा है, EMI कट रही है, फिर भी अंदर कहीं न कहीं एक अनकहा डर बैठा रहता है।

1. असली समस्या कम कमाई नहीं, बिना दिशा की कमाई है

ज़्यादातर लोग खुद को यही समझाते हैं कि उनकी Salary कम है इसलिए बचत नहीं हो पा रही, कई बार ये बात सही भी होती है, लेकिन ज़्यादातर मामलों में असली दिक्कत income नहीं बल्कि direction की होती है, पैसा जब बिना plan के आता है तो बिना plan के ही चला जाता है, ₹30,000 कमाने वाला भी परेशान रहता है और ₹1,00,000 कमाने वाला भी, फर्क सिर्फ़ इतना होता है कि बड़ा amount होने पर गलती थोड़ी देर से दिखती है, पैसा पानी की तरह है, रास्ता नहीं मिलेगा तो फैल जाएगा।

2. खर्च Salary से पहले तय हो जाते हैं

हमारी ज़िंदगी में ज़्यादातर खर्च पहले से fix होते हैं—घर का किराया, बच्चों की फीस, बिजली-पानी का bill, internet, groceries, EMI—इन सब पर कोई बहस नहीं होती, Salary बस इन सबको पूरा करने का ज़रिया बनकर रह जाती है और जब सब खर्च निकल जाते हैं तब बचत की बात होती है, लेकिन तब तक अक्सर कुछ बचता ही नहीं, यही वजह है कि बचत को आख़िर में रखने का मतलब होता है उसे कभी न करना।

3. छोटे-छोटे खर्च जो दिखाई नहीं देते

हम बड़े खर्चों पर नज़र रखते हैं लेकिन छोटे खर्च चुपचाप जेब काटते रहते हैं—₹120 की coffee, ₹199 का subscription, ₹300 का online खाना, ₹500 की अचानक shopping—अलग-अलग देखकर ये सब harmless लगते हैं और लगता है कि इतना तो चलता है, लेकिन महीने के अंत में यही छोटे खर्च मिलकर बड़ा hole बना देते हैं और सबसे बड़ी बात ये कि इन पर guilt भी नहीं होता।

4. Lifestyle upgrade जो महसूस ही नहीं होती

पहली Salary के समय कम में भी खुशी मिल जाती थी, simple phone, साधारण खाना, बिना plan के weekend, सब ठीक लगता था, फिर income बढ़ी और बिना notice किए lifestyle भी upgrade होती चली गई, जो चीज़ पहले luxury थी वो धीरे-धीरे need बन गई, बड़ा phone ज़रूरी लगने लगा, बाहर खाना routine बन गया, trips को mental break कहकर justify किया जाने लगा, problem अच्छा जीने में नहीं है, problem तब होती है जब खर्च income के साथ दौड़ने लगते हैं।

5. बचत को हमेशा “अगले महीने” पर टाल देना

हम खुद से कहते हैं कि इस महीने थोड़ा खर्च ज़्यादा हो गया, अगले महीने save करेंगे, लेकिन अगला महीना भी कोई न कोई वजह लेकर आ जाता है—festival, family obligation, medical expense—और बचत फिर पीछे छूट जाती है, सच ये है कि बचत leftover से नहीं बनती, बचत priority से बनती है, पैसा वहीं जाता है जहाँ उसे पहले भेजा जाता है।

6. दूसरों की ज़िंदगी देखकर अपने फैसले बदल लेना

Social media पर हर कोई खुश और settled दिखता है, हम ये नहीं देखते कि उस तस्वीर के पीछे कितनी EMI है या कितना stress है, फिर भी comparison हो जाता है और हम अपने budget को छोड़कर दूसरों की highlight reel के हिसाब से जीने लगते हैं, वही phone, वही lifestyle, वही trips, और धीरे-धीरे पैसा हमारे control से बाहर निकलने लगता है।

7. पैसा सिर्फ़ नंबर नहीं, emotion भी है

हम मानते नहीं लेकिन पैसा emotions से बहुत जुड़ा होता है—stress में shopping, boredom में online order, sadness में travel plan—उस वक्त लगता है कि खुद को reward दे रहे हैं, लेकिन बाद में वही खर्च चुभने लगता है, जब तक ये नहीं समझेंगे कि पैसा emotional decisions से भी खर्च होता है, तब तक उस पर control बनाना मुश्किल रहेगा।

8. कोई simple system न होना सबसे बड़ी कमी है

ज़्यादातर लोग careless नहीं होते, बस उनके पास कोई साफ़ system नहीं होता, income कितनी है, fixed खर्च कितने हैं, flexible कितना है—ये clarity नहीं होती, सब कुछ दिमाग़ में चलता रहता है और दिमाग़ पहले से ही थका हुआ होता है, बिना system के पैसा संभालना वैसा ही है जैसे बिना नक्शे के सफ़र करना।

9. छोटी आदतें बड़ा फर्क ला सकती हैं

Salary आते ही खुद को pay करना, चाहे amount छोटा ही क्यों न हो, ₹2000, ₹3000 या ₹5000, उसे पहले अलग कर देना और फिर बाकी पैसों में महीना निकालना शुरू में uncomfortable लगता है, लेकिन धीरे-धीरे यही normal बन जाता है, आदत बनते ही पैसे का व्यवहार बदलने लगता है।

10. बचत का मतलब ज़िंदगी रोकना नहीं है

बचत का मतलब ये नहीं कि आप हर खुशी से दूर हो जाएँ, मतलब बस इतना है कि आप हर खर्च जान-बूझकर करें, जो चीज़ सच में खुशी देती है वहाँ पैसा जाए और जो सिर्फ़ आदत या दिखावे के लिए है वहाँ रुकना सीखें, पैसा तभी काम का है जब वो guilt नहीं, सुकून दे।

निष्कर्ष: पैसा तभी साथ देता है जब आप उसे देखना शुरू करते हैं

पैसा इसलिए नहीं खत्म होता क्योंकि आप कम कमाते हैं, ज़्यादातर बार इसलिए खत्म होता है क्योंकि उसे कोई दिशा नहीं दी जाती, जिस दिन आपने अपने पैसे को ignore करना बंद कर दिया और उसे समझना शुरू किया, उसी दिन से anxiety कम होने लगती है, महीने के आख़िर में डर नहीं लगता और अचानक कोई खर्च आए तो panic नहीं होता, improvement एक दिन में नहीं आता लेकिन एक बार शुरू हो जाए तो ज़िंदगी थोड़ी आसान ज़रूर हो जाती है।


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