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क्या आप भी इन 'साइलेंट किलर्स' के शिकार हैं? जो खत्म कर रहे हैं आपका भरोसा

दिसंबर 24, 2025
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कभी आपने महसूस किया है कि आप वही इंसान हैं, हालात भी बहुत अलग नहीं हैं, फिर भी अंदर कुछ बदल गया है, पहले जो फैसले आसानी से ले लेते थे अब उनमें डर लगता है, पहले जो बात खुलकर बोल लेते थे अब गले में अटक जाती है, और एक दिन अचानक आईने में खुद को देखकर लगता है कि ये वही इंसान है क्या जो कभी अपने आप पर इतना भरोसा करता था, ये टूटन किसी एक झटके में नहीं आती, ये धीरे-धीरे आती है, इतनी चुपचाप कि हमें पता भी नहीं चलता कि हम कब अपने ही खिलाफ हो गए।

1. भरोसा टूटता नहीं, घिसता है

खुद पर भरोसा अक्सर किसी एक failure से नहीं टूटता, वो छोटे-छोटे experiences से घिसता है, हर बार जब आप कुछ कहना चाहते थे लेकिन चुप रह गए, हर बार जब आपने खुद को ये कहकर रोका कि “छोड़ो, मुझसे नहीं होगा”, हर बार जब आपने किसी और की राय को अपनी आवाज़ से ऊपर रखा, ये सब मिलकर भरोसे की परत को पतला करते जाते हैं, और एक दिन लगता है कि अंदर कुछ बचा ही नहीं।

2. तुलना वो ज़हर है जो रोज़ थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीते हैं

आज comparison कोई बड़ी चीज़ नहीं लगती, ये रोज़ की आदत बन चुका है, social media खोलते ही लगता है कि सब आगे निकल गए हैं, कोई career में, कोई confidence में, कोई रिश्तों में, और हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं, ये तुलना एक दिन में नहीं मारती, लेकिन रोज़ थोड़ा-थोड़ा असर करती है, और धीरे-धीरे हमें ये यकीन दिला देती है कि हम कम हैं।

3. बचपन की आवाज़ें आज भी पीछा करती हैं

कई बार भरोसा इसलिए नहीं बन पाता क्योंकि हमारे अंदर अभी भी वो पुरानी आवाज़ें बोलती रहती हैं, “तुमसे नहीं होगा”, “तुम average हो”, “ज़्यादा मत सोचो”, ये बातें शायद किसी ने सालों पहले कही हों, लेकिन दिमाग़ ने उन्हें delete नहीं किया, और आज जब भी हम कुछ नया करने की सोचते हैं, वही आवाज़ सबसे पहले सामने आ जाती है।

4. हम हर गलती को अपनी पहचान बना लेते हैं

गलती होना इंसानी बात है, लेकिन हम गलती को event नहीं मानते, हम उसे अपने character का हिस्सा बना लेते हैं, एक decision गलत हुआ तो लगता है कि मैं ही गलत हूँ, एक बार असफल हुए तो लगता है कि मैं हमेशा fail ही रहूँगा, यही सोच भरोसे को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाती है, क्योंकि हम खुद को सुधारने की बजाय खुद से लड़ने लगते हैं।

5. लोग क्या कहेंगे, ये सवाल बहुत महँगा पड़ता है

कई फैसले हम इसलिए नहीं लेते क्योंकि डर लगता है कि लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, judge करेंगे, मज़ाक उड़ाएँगे, और धीरे-धीरे हम अपनी ज़िंदगी audience के हिसाब से जीने लगते हैं, जहाँ applause ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है और inner peace पीछे छूट जाता है, इस process में भरोसा हमेशा हारता है।

6. हम अपनी progress को खुद ही ignore कर देते हैं

अजीब बात ये है कि हम अपनी छोटी-छोटी जीतों को कभी seriously नहीं लेते, लेकिन अपनी कमियों की पूरी list याद रखते हैं, जो चीज़ें हमने सीखी, जो मुश्किलें हमने संभालीं, जो हालात हमने झेले, उन्हें हम “normal” मान लेते हैं, और जो नहीं कर पाए, वही हमारी पहचान बन जाती है, इससे भरोसा बनना मुश्किल ही नहीं, लगभग impossible हो जाता है।

7. भरोसा loud नहीं होता, वो quiet होता है

हम अक्सर confidence को loud personality से जोड़ देते हैं, बोलने वाला, दिखने वाला, assertive इंसान confident लगता है, लेकिन असली भरोसा शांत होता है, वो खुद को prove नहीं करता, वो comparison नहीं करता, वो बस इतना जानता है कि मैं सीख सकता हूँ, मैं संभल सकता हूँ, और ये समझ धीरे-धीरे आती है, किसी motivational वीडियो से नहीं।

8. खुद से बात करने का तरीका बहुत मायने रखता है

आप दिन भर में खुद से क्या कहते हैं, ये शायद सबसे underrated चीज़ है, अगर हर गलती पर आप खुद को डाँटते हैं, खुद को नीचा दिखाते हैं, तो भरोसा कैसे बचेगा, जिस तरह आप अपने दोस्त से बात करते हैं, वही भाषा अगर आप अपने लिए इस्तेमाल करने लगें, तो बहुत कुछ बदल सकता है, बिना किसी dramatic बदलाव के।

9. भरोसा वापस लाने के लिए बड़े कदम नहीं चाहिए

अक्सर लगता है कि confidence वापस लाने के लिए life बदलनी पड़ेगी, job बदलनी पड़ेगी, personality बदलनी पड़ेगी, लेकिन सच ये है कि भरोसा छोटे-छोटे actions से लौटता है, वो काम करना जो आपने टाल रखा था, वो बात कहना जो आप दबा रहे थे, वो decision लेना जो डर की वजह से अटका हुआ था, हर छोटा कदम अंदर कुछ जोड़ता है।

10. खुद पर भरोसा कोई permanent state नहीं है

ये मान लेना ज़रूरी है कि भरोसा हमेशा एक जैसा नहीं रहता, कभी ज़्यादा होता है, कभी कम, और ये normal है, problem तब होती है जब हम कम भरोसे वाले phase को अपनी पहचान मान लेते हैं, जबकि ये सिर्फ़ एक phase होता है, जो बदल सकता है, जैसे ज़िंदगी के बाकी हिस्से बदलते हैं।

निष्कर्ष: भरोसा बाहर से नहीं, भीतर से वापस आता है

खुद पर भरोसा कोई gift नहीं है जो कोई आपको दे दे, और न ही ये हमेशा के लिए खो जाता है, ये एक रिश्ता है जो समय, धैर्य और ईमानदारी से वापस बनता है, जिस दिन आप खुद के साथ खड़े होना शुरू करते हैं, उसी दिन से भरोसा लौटने लगता है, बिना शोर के, बिना ऐलान के, बस चुपचाप।


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